कभी टीम इंडिया की फुटबॉलर, अब जोमैटो की डिलीवरी गर्ल:साइकिल से घर-घर पहुंचा रही खाना, कॉलेज की फीस भरने के भी पैसे नहीं

नई दिल्ली13 दिन पहलेलेखक: संजय सिन्हा
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मैं पॉलिमी अधिकारी, कोलकाता की रहनेवाली हूं। फुटबॉलर हूं, इंडिया U-16 और U-19 के लिए खेल चुकी हूं। फुटबॉल में मेरा करिअर आगे बढ़ता लेकिन गरीबी ने मुझे डिलीवरी गर्ल बना दिया। अब पैरों में फुटबॉल शूज नहीं होते, पीठ पर फूड के पैकेट्स ढोती हूं। जोमैटो के लिए काम करती हूं। घर-घर खाना पहुंचाती हूं।

दैनिक भास्कर के ये मैं हूं सीरीज में आज मेरी कहानी जानिए।

सात साल की उम्र से फुटबॉल खेलना शुरू किया

मैं जब सात साल की थी, तब से ही फुटबॉल खेलना शुरू किया। मेरे घर के पास ही एक छोटा ग्राउंड है। वहां लड़के प्रैक्टिस करते थे। मैं अकेली लड़की थी जो वहां खेलने के लिए जाती थी। तब किसी को पता नहीं था कि मैं लड़की हूं। जब उन्हें पता चला तो मुझे खेलने से रोकने लगे। उनके पेरेंट्स ने ग्राउंड के अथॉरिटीज को इस बात की शिकायत की कि कोई लड़की यहां फुटबॉल कैसे खेल सकती है। फील्ड में लड़की शॉर्टस पहन कर आए, इसकी अनुमति ही नहीं थी। लेकिन खेलने की ललक ऐसी थी कि रोकने के बावजूद मैं रुकी नहीं।

स्कूल में हॉकी खेली, नेशनल में चांस मिला

मुझे फुटबॉल अच्छा लगता था। लेकिन, मैं जिस स्कूल में पढ़ती थी वहां हॉकी टीम थी। मैं हॉकी खेलने लगी। कई टूर्नामेंट खेले। तब मुझे जूनियर हॉकी में खेलने के लिए नेशनल टीम में जाने का चांस मिला। लेकिन मैं हॉकी में आगे नहीं बढ़ना चाहती थी। मुझे फुटबॉल खेलना था।

पॉलिमी अधिकारी के संघर्ष को विस्तार से जानने से पहले एक पोल पर अपनी राय साझा करते चलिए।

कोलकाता फुटबॉल लीग में खेलना शुरू किया

मेरी मौसी जानती थीं कि फुटबॉल से मुझे कितना लगाव है। उन्होंने मुझे कभी फुटबॉल खेलने से नहीं रोका। इसी बीच स्कूल की एक सीनियर स्टूडेंट से मिली। वह फुटबॉल खेलती थीं। उन्होंने मुझे कहा कि अगर तुम फुटबॉल खेलना चाहती हो तो अनिता सरकार की कोलकाता फुटबॉल लीग में खेलो। मैंने ट्रायल दिया और फिर मेरा सेलेक्शन हो गया। यह 2011 की बात है। एक साल तक मैं जमकर फुटबॉल की प्रैक्टिस करती रही। इस बीच कई टूर्नामेंट खेले। 2012 में नेशनल टीम में अंडर-16 में सेलेक्शन हो गया।

जूनियर चैंपियनशिप के लिए श्रीलंका गई

मैं अगले ही साल श्रीलंका गई जहां वुमंस जूनियर चैंपियनशिप के क्वालिफाइंग मैच खेलने थे। इसका आयोजन साउथ एशियन फुटबॉल फेडेरेशन की ओर से हो रहा था। वहां मेरा प्रदर्शन शानदार रहा।

क्वालिफाइंग मैच के दौरान जख्मी हुई

2013 में एशिया कप के क्वालिफाइंग मैच के दौरान ही मैं जख्मी हो गई। मेरे पैरों में गंभीर चोट लगी थी। हालात ऐसे हुए कि कई सर्जरी करनी पड़ी। इससे उबरने में डेढ़ साल से अधिक का समय लगा। 2014 और 2015 लगभग रिकवरी में ही चला गया।

2016 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में वर्ल्ड होमलेस चैंपियनशिप के दौरान पॉलिमी (सबसे बाएं)। पॉलिमी के साथ खेल चुकीं अधिकतर प्लेयर्स को स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी मिल चुकी है।
2016 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में वर्ल्ड होमलेस चैंपियनशिप के दौरान पॉलिमी (सबसे बाएं)। पॉलिमी के साथ खेल चुकीं अधिकतर प्लेयर्स को स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी मिल चुकी है।

2016 में स्कॉटलैंड खेलने गई

रिकवरी के बाद मुझे स्कॉटलैंड जाने का मौका मिला। वहां ग्लासगो में होमलेस वर्ल्ड कप में भाग लिया। यह एक इंटरनेशनल स्ट्रीट फुटबॉल टूर्नामेंट है। वहां से लौटने के बाद 2017 और 2018 में यूनिवर्सिटी नेशनल चैंपियनशिप खेली। स्टेट लेवल के टूर्नामेंट खेलती रही।

शूज खरीदने के लिए भी नहीं थे पैसे

मैं फुटबॉल खेल तो रही थी लेकिन घर बड़ी मुश्किल से चल रहा था। कई बार तो सुबह-शाम खाने का भी संकट होता। परिवार के लोग कहते कि खेल कर क्या होगा। कहीं काम कर ले। किसी तरह घर तो चल जाएगा। दाल-रोटी का जुगाड़ हो जाएगा। तब परिवार के सिवा किसी ने मेरा साथ नहीं दिया। उस वक्त मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि फुटबॉल के लिए जर्सी या शूज खरीद सकूं। अगर 500 रुपए जमा भी कर लेती तो शूज कैसे लेती। मन यही सोचता कि इतने पैसे से दो-तीन दिन का चावल-दाल आ जाएगा। फील्ड पर फटे शूज पहनकर जाती तो कोच बोलते कि ये नहीं चलेगा। तब मैं कहती कि अंकल ये तो कई साल चल जाएगा।

जब 2 महीने की थी तब मां गुजर गई

मुझे मेरी मौसी ने ही पाला। जब 2 महीने की थी, तब मेरी मां गुजर गई। मेरे मौसा बहुत पहले गुजर गए थे। मौसी, मौसेरा भाई, दादी और मैं एक साथ रहते थे। मौसी घर-घर जाकर पेटीकोट, ब्लाउज बेचती थीं। पापा ड्राइवर हैं, हफ्ते में दो-तीन दिन ही काम कर पाते हैं। वो अलग रहते हैं। वो भी इतने पैसे नहीं कमा पाते कि हमारी मदद कर सकें। बड़ी बहन की शादी हो चुकी है। उसके पास भी इतनी रकम नहीं है कि मेरी मदद कर सकें।

बिना ग्रेजुएशन नहीं मिली जॉब

मैं कोलकाता के ही चारूचंद्र कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रही थी। इसी बीच परिवार की मदद करने के लिए नौकरी करने की सोची। लेकिन कहीं भी जॉब के लिए ग्रेजुएशन की डिमांड थी। मैं निराश हो गई।

परिवार के लिए जोमैटो जॉइन किया

परिवार की मदद करने के लिए मैंने जोमैटो जॉइन करने का डिसीजन लिया। 2019 से अब तक मैं डिलीवरी गर्ल के रूप में काम कर रही हूं।

रात 1 बजे तक करती हूं डिलीवरी

हर दिन सुबह 10 बजे से मेरी ड्यूटी शुरू होती है। ऑर्डर मिलते ही अपनी साइकिल से ही फूड डिलीवरी करने निकल जाती हूं। हर घंटे का स्लॉट मिला होता है। 10 से 2.30 बजे तक ऑन ड्यूटी रहती हूं। इस बीच शाम 4 से 5.30 बजे तक फुटबॉल की प्रैक्टिस करती हूं। फिर 6 बजे से मेरी ड्यूटी शुरू होती है। रात 12 से 1 बजे तक डिलीवरी करती रहती हूं।

हर दिन 50 से 60 किमी साइकिल चलाती हूं

डिलीवरी गर्ल के रूप में कमाई इतनी ही हो पाती है कि किसी तरह परिवार को दो पैसे मिल जाए। हर दिन डिलीवरी के हिसाब से कमाई होती है। अपने घर से 14 किमी डिलीवरी होने पर 70 रुपए मिलते हैं। लेकिन अधिकतर डिलीवरी 1 से 2 किमी की दूरी वाली होती है जिस पर 20 से 25 रुपए ही मिलते हैं।

अगर दिनभर में 10 से 12 डिलीवरी हो जाए तो 200 से 300 रुपए मिलते हैं। 14 किमी की डिलीवरी कभी-कभी ही हो पाती है। तो बड़ी मुश्किल से एक महीने में 6 हजार रुपए तक की कमाई हो जाती है। कभी-कभी तो दिनभर में एक-दो ही डिलीवरी मिलती है। तब 20-40 रुपए ही पॉकेट में आ पाते हैं। हां, त्योहारों के समय अच्छी कमाई हो जाती है। दुर्गा पूजा के समय तो रात-रात भर डिलीवरी करती हूं। 2019 से डिलीवरी का काम शुरू किया जो अब तक चल रहा है। जोमैटो, अमेजॉन, स्विगी के लिए काम किया है।

कोच अनिता सरकार के साथ पॉलिमी अधिकारी। अनिता सरकार ने ही पॉलिमी की प्रतिभा को पहचाना और उसे फुटबॉल लीग में खेलने का मौका दिया।
कोच अनिता सरकार के साथ पॉलिमी अधिकारी। अनिता सरकार ने ही पॉलिमी की प्रतिभा को पहचाना और उसे फुटबॉल लीग में खेलने का मौका दिया।

लॉकडाउन में परिवार के लिए सहारा बनी

जब लॉकडाउन में कहीं से पैसे की कमाई नहीं थी, तब भी मैंने जोमैटो में काम किया। कोविड के पीक पर रहने के दौरान भी मैंने फूड डिलीवरी की।

काम की वजह से प्रैक्टिस कम हो गई

जब जोमैटो जॉइन किया तब यह सोचा था कि हर दिन 4-5 घंटे काम करके 300-400 रुपए कमा लूंगी। इससे घर चलाने में थोड़ी मदद हो जाएगी। मेरी प्रैक्टिस भी चलते रहेगी। लेकिन जोमैटो में आने के बाद वैसा नहीं हुआ जैसा मैंने सोचा था। फुटबॉल की प्रैक्टिस कम हो गई।

डाइट कम लेती हूं ताकि परिवार को खाना मिले

स्पोर्ट्स पर्सन के लिए अच्छी डाइट जरूरी है। लेकिन मैं खुद के लिए अंडे, दूध नहीं ले पाती। ब्रेकफास्ट में दो अंडे भी नहीं ले पाती, क्योंकि इससे दोपहर में सभी का खाना बन जाएगा।

फीस नहीं देने से बीए पार्ट 3 की परीक्षा नहीं दे पाई

मैंने कॉलेज में एडमिशन स्पोर्ट्स कोटा से लिया था। भर्ती के समय सामान्य छात्रों के मुकाबले कम पैसे लगे थे। पार्ट 1 और 2 में परेशानी नहीं हुई। लेकिन 2021 में पार्ट 3 की परीक्षा के लिए एक बार में 5000 रुपए देने थे। एग्जाम फीस अरैंज नहीं कर पाई इसलिए परीक्षा छोड़नी पड़ी। मैंने कॉलेज मैनेजमेंट को कुछ नहीं कहा। मुझे लगता कि पता नहीं बोलने के बाद होगा या नहीं। इसलिए मैं चुप ही रही।

दो महीने पहले वीडियो वायरल

दो महीने पहले एक सोशल वर्कर अतिंद्र चक्रवर्ती ने फूड डिलीवरी करते मेरा वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दिया। वीडियो वायरल हुआ तो मीडिया के कई लोग मेरे घर पहुंचे। इंडियन फुटबॉल फेडेरेशन के प्रेसिडेंट ने भी फोन किया। तब मदद करने की बात कही, लेकिन फिर बात आई गई हाे गई।

स्पोर्ट्स मिनिस्टर ने आश्वासन दिया

वीडियो वायरल होने के बाद पश्चिम बंगाल के स्पोर्ट्स मिनिस्टर अरूप विश्वास ने बुलाया। मैंने उनसे कहा कि सर एक जॉब मिल जाती तो स्पोर्ट्स कंटीन्यू कर पाते। उन्होंने कहा कि ठीक है मैं देखता हूं। मुझे अब भी उम्मीद है कि शायद वो कुछ करेंगे। उन्होंने कई स्पोर्ट्स पर्सन की मदद की। शायद मेरी भी मदद करेंगे।

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