‘जाति है कि जाती नहीं’... हरिशंकर परसाई की यह लाइन बिहार के सामाजिक ढांचे पर काफी सटीक बैठती है। एक लड़की जो पासवान समुदाय से आती है। बचपन में उसे उसकी जाति की वजह से नाम बदलने की सलाह मिलती थी। यह सलाह कभी स्कूल टीचर तो कभी अपने समुदाय के लोग ही दे देते थे। आज वो लड़की न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी अपने काम की वजह से जानी जाती है। आज ‘ये मैं हूं’ में मिलिए सोशल एक्टिविस्ट, लेखिका और मोटिवेशनल स्पीकर रेणु पासवान से।
पढ़ाई में औसत थी लेकिन कुछ करने की ललक थी
मां हाउस वाइफ और पापा एसबीआई में क्लर्क की नौकरी करते थे। मैं चार-भाई बहन हूं। मेरे दो भाई स्पेशल चाइल्ड थे। बहन भी बीमार रहती थी। कुल मिलाकर कहूं तो मुझे छोड़ तीन भाई-बहनों को हेल्थ इशू रहा। पापा की पोस्टिंग मुजफ्फरपुर के मिठनपुरा में हुई थी। वहां हर जाति के लोग थे। हमारे लिए सबसे पहले चुनौती जो थी कि लोग हमें स्वीकार ही नहीं कर पा रहे थे। उसके बाद मुझे रंग-रूप के लिए ताने, मेरे हाथ-पैर में छह ऊंगलियां हैं उसे लेकर बातें होती थीं। मेरे ज्यादातर पड़ोसी अपर कास्ट थे तो वो हमेशा ही ताना देते। कहते, तुम लोग कितना भी पढ़ लो बुद्धि नहीं आने वाली। तुमलोगों को तो दूसरों को घर ही काम करना है तो पढ़कर क्या करोगी? जैसे-तैसे दसवीं-बारहवीं तक की पढ़ाई मुजफ्फरपुर से की। मैं पढ़ने में बहुत अच्छी तो नहीं थी लेकिन ये पता था कि कुछ करना है। मेरे आगे बढ़ने में मां का बहुत बड़ा योगदान है। मां पढ़ी-लिखी नहीं थीं लेकिन हम बहनों के लिए हमेशा पापा से लड़ीं। मां अगर नहीं होतीं तो शायद हम बहनों का बाल विवाह हो जाता।
9-5 की जॉब के साथ जिंदगी नॉर्मल चल रही थी
पापा चाहते थे कि मैं मेडिकल करूं और मेरी बहन इंजीनियरिंग। लेकिन मैं उसमें सफल नहीं हो पाई। मेडिकल नहीं हुआ फिर पापा शादी पर अड़ गए। मैंने पापा को काफी समझाया, जब वो नहीं माने तो मैंने घर छोड़ दिया। बायोटेक करने बेंगलुरू चली गई। उसके बाद मैंने पुणे से एमबीए किया। फिर 2010 में मेरी जॉब इंफोसिस में लग गई। मैं 2010-2020 तक इंफोसिस में आईटी सर्विस डेस्क पर बतौर सीनियर प्रोजेक्टर काम कर रही थी। नौ से पांच की जॉब थी। जिंदगी नॉर्मल चल रही थी। लेकिन मुझे ये नहीं करना था। कहीं कुछ अटका हुआ था।
भाई की मौत मुझे ब्लॉगिंग की तरफ ले गई
मेरी बचपन से आदत है कि कहीं कुछ अच्छा लिखा देखती तो अपनी डायरी में लिख लेती। साल 2016 में मेरे एक भाई की मौत हो गई। घर में माहौल बहुत खराब था। भाई का जाना मेरे घर के लिए बड़ा धक्का था। उस दौरान मैंने अपनी मानिसक शांति के लिए ब्लॉग लिखना शुरू किया। फिर उसके बाद रुकी नहीं। अपनी लाइफ के अलावा मैं वुमन सेंट्रिक मुद्दों पर लिखती। मेरा लिखा ऑफिस में सबको बहुत पसंद आता। अपनी लेखनी की वजह से मैं धीरे-धीरे पुणे में पॉपलुर होने लगी। मैंने अपनी कंपनी में कई सेशन लिया। पुणे में ही कई फोरम में पार्टिसिपेट करने लगी।
जीवन में क्या करना है TEDx के मंच से रास्ता मिला
साल 2017 में मुंबई TEDx गेटवे में भाग लेने पहुंची। वहां जब मैंने देसी-विदेशी स्पीकर्स को सुना तो समझ आया जीवन में क्या करना है। वहां मौजूद लोगों ने जब मेरी कहानी सुनी तो उनलोगों ने मुझे लिखने के लिए मोटिवेट किया। 2018 में मैंने अपनी पहली किताब ‘लाइव टू इंस्पायर’ लिखी। उसके बाद मैंने 'सस्टेनबल डेवलपमेंट एंड गोल्स', 'द न्यू यू अनलॉक्ड', 'द कॉन्फिडेंस इन यू', 'को ऑथर- सिस्टर्स स्टोरी' जैसी किताबें लिखीं। 2019 में लंदन में आयोजित वुमन इकनोमिक फोरम के लिए इनवाइट किया गया। उसके बाद मुझे यूएन के कई फोरम में जेंडर जस्टिस, डॉमेस्टिक वॉयलेंस जैसे मुद्दों पर बात करने के लिए बुलाया जाने लगा। जेंडर इक्वालिटी पर काफी तैयारी करके सेशन लेने लगी।
नौकरी छोड़ सोशल वर्क करने का लिया फैसला
जॉब के साथ मैं पुणे में सोशल वर्क और किताब लिखना दोनों ही कर रही थी। साल 2020 में मां की मौत के बाद मैंने बिहार लौटने का फैसला किया। मेरी मां काफी मिलनसार थीं। उनके पास जितना होता था, उतने में ही हमेशा जरूरतमंदों के लिए कुछ न कुछ करती थीं। मैंने मां के काम को बड़े लेवल पर ले जाने का सोचा। ‘द वॉयस फॉर नो वॉयस‘ नाम से एनजीओ शुरू किया। इसके जरिए मैं अलग-अलग मंच से जेंडर इक्वालिटी, वुमन एजुकेशन, डॉमेस्टिक वॉयलेंस जैसे मुद्दों पर लोगों को समझाती हूं। खासकर वुमन एजुकेशन के बारे में।
मेरे काम की वजह से राष्ट्रपति मुर्मू ने मिलने बुलाया
वुमन और जेंडर इक्वालिटी पर किए गए काम की वजह से मुझे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरफ से मिलने का बुलावा आया। उनसे मिलने के पहले का प्रोसेस काफी डराने वाला रहा। प्रेसिडेंट के पीएस का कॉल आने के बाद मेरे घर पर सीआईडी की टीम, लोकल पुलिस वाले, अलग-अलग तरीके का वेरिफिकेशन शुरू हुआ। पहले तो मैं डर गई कि ये क्या हो रहा मेरे साथ। फिर मुझे बताया गया कि ये वीआईपी मीटिंग के पहले का प्रोसिजर है। पिछले साल 24 दिसंबर को राष्ट्रपति मुर्मू मुझसे मिली। लगभग आधे घंटे तक मेरी उनसे मुलाकाल हुई। उस दौरान उन्होंने मेरे काम के बारे में विस्तार से जाना। मेरे समाज के लिए यह बहुत गर्व की बात है।
इस जगह तक पहुंचने से पहले मुझे नारी शक्ति को प्रणाम, इंडिया अचीवर्स, आईकॉनिक वुमन ऑफ द ईयर, शी द चेंज, बिहार ग्लोबल एक्सलेंस अवॉर्ड, स्पेशल अचीवमेंट अवॉर्ड्स जैसे कई अवॉर्ड्स से नवाजा गया है। अब मेरा लक्ष्य संसद है। मेरी कोशिश है कि मैं अपने काम के जरिए वहां पहुंचुं।
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