कथक कहते ही पंडित बिरजू महाराज का नाम जुबान पर आ जाता है। पंडित बिरजू महाराज लखनऊ के कालका बिंदादीन घराने से थे और कथक नृत्य की परंपरा को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहचान दिलवाई। पंडित बिरजू महाराज आज इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी कथक परंपरा को उनकी नातिन शिंजिनी कुलकर्णी आगे बढ़ा रही हैं।
आज के ‘ये मैं हूं’ में मिलिए कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज की नातिन शिंजिनी कुलकर्णी से। शिंजिनी दिल्ली में रहती हैं और 3 साल की उम्र से कथक कर रही हैं। उनके नाना पंडित बिरजू महाराज उनके गुरु हैं।
बचपन में ही नाना बने गुरु
मेरे पापा कर्नाटक से हैं और वो पेंटिंग-स्कल्पचर से जुड़े रहे और मां म्यूजिक और डांस से। बचपन से ही मुझे घर में कला का माहौल रहा।
शुरुआत में मेरी मौसी ममता महाराज ने मुझे कथक सिखाया और उनके बाद नाना पं. बिरजू महाराज से मैंने कथक की शिक्षा ली। मैंने 3 साल की उम्र में कथक सीखना शुरू किया लेकिन मैं कथक की प्रोफेशनल डांसर 2011 में बनी।
पहली स्टेज परफॉर्मेंस पर भांगड़ा कर दिया
मैं 5 साल की थी जब मेरी पहली स्टेज परफॉर्मेंस हुई। वह परफॉर्मेंस थी तो क्लासिकल डांस की लेकिन मैंने उसे सेमी क्लासिकल डांस बना दिया था।
स्टेज से जैसे ही पर्दा उठा मेरे सामने बहुत सारे लोग बैठे हुए थे। मैं ऑडियंस को देख इतना डर गई कि अपने स्टेप्स ही भूल गई और भांगड़ा करके वापस आ गई।
उस समय नानाजी ने तो मुझे कुछ नहीं कहा लेकिन मां ने मुझे बहुत डांटा। उन्होंने कहा कि तुम जिस खानदान से हो, तुम्हें डरना बिल्कुल शोभा नहीं देता। 5 साल की उम्र के बाद मैंने स्टेज पर अपना दूसरा परफॉर्मेंस 8 साल की उम्र में किया और इस बार विशुद्ध कथक किया।
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नाना के चले जाने बाद डांस करना छोड़ दिया था
जब मेरे नाना ने 2022 में इस दुनिया को अलविदा कहा तो मैं टूट गई। मैं उनके बहुत करीब थी। मैंने न केवल नाना बल्कि अपना गुरु खोया था।
हर छोटी--बड़ी बात मैं उनसे पूछती। उनकी सलाह के बिना कुछ नहीं करती। वह मेरे मार्गदर्शक थे। उनके जाने के बाद मुझे डिप्रेशन ने घेर लिया। मन में डर बैठ गया और घबराहट बनी रहती। मैं सोचती कि जिंदगी में अब आगे मुझे कौन गाइड करेगा।
मुझे घुंघरू बांधने का मन नहीं करता। अधिकतर जिन गानों पर हम कथक करते हैं, वह नाना की आवाज में हैं। जब उनकी रिकॉर्डिंग चलती तो नाना की आवाज सुनकर मैं इमोशनल हो जाती। उनके जाने के बाद मैंने खुद को कथक से दूर कर लिया था। लगभग 3 महीने तक मैंने कथक नहीं किया क्योंकि मैं घुंघरू बांधकर खड़ी ही नहीं हो पा रही थी।
बहुत मुश्किल से मैंने खुद को समझाया कि अगर नानाजी मेरी जगह होते तो वह इस बुरे समय में खुद को कथक में डुबो देते। यह सोच मैंने अपने दिल को समझाया और दोबारा कथक शुरू किया।
कॉलेज में मिलने लगे थे फिल्मों के ऑफर
कॉलेज के दौरान जब मैंने स्टेज पर कथक करना शुरू किया तो मुझे फिल्मों से ऑफर आने लगे। मैंने कभी एक्टिंग को करियर बनाने की नहीं सोची था और मैं अभिनय की गहराई सीखना चाहती थी।
2015 में आई फिल्म ‘जांनिसार’ में एक गाने में डांस किया। इस गाने की कोरियोग्राफी नाना ने ही की थी।
इसके बाद मैंने बंगाली फिल्म ‘हर हर ब्योमकेश’ में काम किया। यह फिल्म मुझे कोलकाता में कथक का शो करने के बाद ऑफर हुई थी।
मैंने रवि किशन के अपोजिट बतौर लीड एक्ट्रेस के भोजपुरी फिल्म भी की।
फिल्मों में ब्रेक लेने के लिए डांस कर रही हूं, यह ताना भी सुना
मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टिफन कॉलेज से ग्रेजुएशन की है। इसके बाद पोस्ट ग्रेजुएशन की। चूंकि मैं हमेशा से पढ़ाई में अच्छी रही हूं तो लोगों को उम्मीद नहीं की थी कि मैं कथक में अपना करियर बनाऊंगी।
डांस शुरू करने के साथ ही मैंने फिल्मों और थिएटर में काम शुरू कर दिया था। ऐसे में कई लोगों को लगा कि मैं कथक को लेकर गंभीर नहीं हूं। मैं एक्ट्रेस बन सिर्फ गानों में डांस करने के लिए कथक सीखती हूं। उन्हें लगता था कि मेरा मकसद एक्टिंग करना है लेकिन मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। मैं कलाकार हूं और कला के हर क्षेत्र में खुद को आजमाना चाहती थी। हालांकि मुझे कई साल खुद को साबित करने में लगे कि मैं कथक को लेकर गंभीर हूं।
लोग नानाजी से मेरी तुलना करते तो प्रेशर महसूस होता
मेरे नाना एक जाने माने क्लासिकल डांसर थे। उनकी नातिन होने के नाते मुझ पर अच्छी परफॉर्मेंस का प्रेशर हमेशा बना रहता। मेरे पास गलती की कोई गुंजाइश नहीं थी और ना ही गलती करने की छूट।
अक्सर लोग कहते थे कि आपको पहला ब्रेक बहुत आसानी से मिल जाएगा क्योंकि आपके नाना बहुत मशहूर कथक डांसर हैं। यह सच बात भी है। ब्रेक तो मिल गया लेकिन मुझे अपनी मंजिल खुद बनानी थी। करियर के शुरुआत में ही मेरी तुलना उनसे होने लगी। हर किसी को मैं यह नहीं समझा सकती थी कि नाना ने अपने जीवन के 60 साल कथक को दिए हैं जबकि मैं डेब्यू कर रही हूं तो उनकी और मेरी बराबरी कैसे हो सकती है? कहां नाना और कहां मैं।
प्रोफेशनल कथक डांसर के तौर पर मेरा पहला परफॉर्मेंस लखनऊ में हुआ। वह हमारे पूर्वजों की जमीन है। वहां के कथक पारखी और दर्शक कथक कला को समझते हैं। ऐसी जगह कथक करने में बहुत डर लग रहा था। लेकिन उसी परफॉर्मेंस के बलबूते मुझे अपना दूसरा शो मिला। आज मैं भारत के अलावा अमेरिका, यूरोप, यूके समेत कई देशों में अपनी कथक की कला को दिखा चुकी हूं। मैंने उस्ताद जाकिर खान के साथ भी स्टेज शेयर किया हैं।
अपनी शादी में बारातियों के बाद पहुंची
मेरी शादी 4 नवंबर 2023 को हुई। 2 नवंबर को मेरा पुणे में स्टेज शो था। मैंने वहां परफॉर्म किया। इस बीच शादी की तैयारियां भी जोरों पर चल रही थीं।
शादी में सब बाराती पहुंच चुके थे लेकिन मैं सबके बाद पुणे से अपनी शादी के वेन्यू पर पहुंची। वहीं शादी के 3 दिन बाद भी मेरा शो था तो मैंने उसकी तैयारी भी की लेकिन कथक को कभी पीछे नहीं छोड़ा। कथक मेरी जिंदगी है।
पं.जसराज की राम स्तुति से करती हूं कथक की शुरुआत
मेरे नाना में बहुत सब्र था। वह बहुत शांत रहते थे। वह किसी को नहीं डांटते थे। वह ठाट हो या गत, कथक के सभी फॉर्म को धीमी गति से सिखाते। अक्सर लोगों को लगता है कि स्लो सीखना आसान होता है लेकिन यह मुश्किल होता है।
कथक में मुझे अभिनय करना बहुत पसंद है क्योंकि चेहरे पर आए भाव से हर कोई खुद को कनेक्ट कर सकता है। मैं कथक की शुरुआत पं.जसराज की राम स्तुति से करती हूं और परफॉर्मेंस के अंत अभिनय, ठुमरी या जुगलबंदी करती हूं। लोगों को जुगलबंदी बहुत पसंद होती है। उन्हें अक्सर लगता है कि जुगलबंदी एक दंगल है, जबकि यह दंगल नहीं बल्कि बातचीत होती है जो बहुत मजेदार लगती है।
मां हमेशा आलोचक रही हैं
कला को सुधारने के लिए सही आलोचक की बहुत जरूरत होती है।
लोग अक्सर परफॉर्मेंस देखकर झूठी तारीफ करते हैं लेकिन मां हमेशा मेरी सच्ची आलोचक और निंदक रही हैं। अगर परफॉर्मेंस अच्छा नहीं होता तो वह कह देती हैं कि अभी और मेहनत करो भले ही दुनिया मेरी परफॉर्मेंस की कितनी ही तारीफे करे।
लोग कभी-कभी सच्ची तारीफ भी करते हैं। परफॉर्मेंस के बाद जब मुझे लोग कहते कि उन्हें मेरे कथक में नाना की झलक दिखी तो मुझे बहुत खुशी होती है।
मैं आईएएस ऑफिसर बनना चाहती थी
हम जिस घराने से ताल्लुक रखते हैं, वहां कथक सीखना जरूरी होता है। घर में सभी को कथक आता है तो मुझे भी सीखना ही था। लेकिन मैं पढ़ाई में बहुत अच्छी थी इसलिए मैं आईएएस ऑफिसर बनना चाहती थी।
मैंने इसके लिए तैयारी भी शुरू की लेकिन कभी सिविल सर्विसेज का एग्जाम नहीं दिया क्योंकि इस बीच मुझे समझ आ गया था कि सिविल सर्विसेज की पढ़ाई बहुत मुश्किल है और इसकी तैयारी में बहुत समय जाएगा। फिर मेरा कथक छुट जाएगा और कथक से दूर रहना मेरे लिए मुश्किल था। इसलिए मैंने अफसर बनने का ख्याल दिल से निकाल दिया।
नेशनल लेवल पर सिखाती हूं कथक
मैं साईं शिंजिनी के नाम से डांस अकैडमी चलाती हूं। इसमें मैं बच्चों को फ्री कथक सिखाती हूं। मेरा मानना है कि मैं बहुत लकी हूं कि मुझे अपने खानदान के अंदर ही पं. बिरजू महाराज जैसे बड़े गुरु मिले लेकिन हर कोई मेरे जैसा किस्मत वाला नहीं होता।
इसलिए ऐसे जरूरतमंद को डांस सिखाना शुरू किया है। जो फीस देकर कथक नहीं सीख सकते और कथक सीखने का शौक रखते हैं, मैं उनके साथ खड़ी रहना चाहती हूं। मैं दिल्ली-एनसीआर के अलावा कर्नाटक, गुजरात, केरल जैसे राज्यों में डांस की वर्कशॉप करवाती हूं।
आज मैं जो भी हूं अपने नाना की वजह से हूं। उन्होंने न केवल मुझे डांस सिखाया बल्कि सादगी से जीना भी सिखाया। अच्छा इंसान बनने के गुर बताए। मैं भगवान को धन्यवाद करती हूं कि मुझे नाना जैसे गुरु और मां जैसी सच्ची आलोचक मिलीं। लेकिन मेरा सफर लंबा है और मुझे मेरी मंजिल अभी दूर है। मुझे नाना के बराबर नाम कमाना है।
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