सृष्टि कौल का जन्म कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ। परिवार मूल रूप से श्रीनगर का रहने वाला था। श्रीनगर के डाउन टाउन में हंसता-खेलता परिवार था। लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि सृष्टि का परिवार जम्मू आ गया। उनका जन्म और शुरुआती पढ़ाई-लिखाई भी यहीं हुई। सृष्टि ने जम्मू को ही अपना घर माना।
11वीं में एक टीचर के कहने पर सृष्टि ने मंच से बोलने की शुरुआत की तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सृष्टि ब्रिक्स जैसे प्रभावशाली मंचों से भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं; कई बार यूथ पार्लियामेंट में हिस्सा लिया है। उन्हें समाज सेवा में उल्लेखनीय योगदान के लिए राष्ट्रपति के हाथों NSS नेशनल अवॉर्ड भी मिल चुका है।
सृष्टि के परिवार को कभी मजबूरी में कश्मीर छोड़ना पड़ा था। लेकिन आज कश्मीर और जम्मू दोनों सृष्टि को अपना मानता है और गर्व करता है।
आज के ‘ये मैं हूं’ में कहानी सृष्टि कौल की; जो उन्होंने वुमन भास्कर को बताया…
पहली डिबेट हारी थी; लेकिन उसके बाद कॉम्पिटिशन जीतने का सिलसिला शुरू हुआ
तब मैं 11वीं में थी। एक दिन मेरी इंग्लिश टीचर ने डिबेट कॉम्पिटिशन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि तुम अच्छी डिबेटर बन सकती है। उन्हें मुझ में संभावना नजर आई। मेरे लिए यह पहला मौका था जब किसी ने दमदार तरीके से अपनी बात रखने की मुझे सलाह दी थी। इससे पहले कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ था कि मैं लोगों के सामने खुल कर बोल भी सकती हूं, अपनी बात रख सकती हूं।
पहली डिबेट कॉम्पिटिशन में मैं हार गई थी। लेकिन मैं अपने बारे ये जान चुकी थी कि मुझे बोलना पसंद है; मैं अपनी इंग्लिश टीचर की तरह बोलना चाहती थी। एक बार हारी, दो बार हारी; लेकिन उसके बाद जीत का सिलसिला शुरू हुआ तो ब्रिक्स और प्रेसिडेंट अवॉर्ड पर जाकर भी नहीं थमा है।
पढ़ाई से ज्यादा मन एक्टिविटीज में लगा, पेंटिंग का भी शौक है
मेरी पढ़ाई-लिखाई जम्मू से हुई। पढ़ने में अच्छी थी। घर में पढ़ाई का माहौल भी था। पिताजी गवर्नमेंट सर्विस में थे, मां होम-मेकर थीं; दोनों अपनी-अपनी फील्ड में काफी अच्छा कर रहे थे। उनसे मुझे प्रेरणा और प्रोत्साहन मिला।
लेकिन मेरा मन पढ़ाई से ज्यादा एक्टिविटीज में लगता था। कॉम्पटीशंस में हिस्सा लेना मुझे खूब भाता। मुझे पेंटिंग करना भी काफी पसंद है। मैं दो बार यूथ पार्लियामेंट में पार्टिसिपेट कर चुकी हूं। मैंने छठे ब्रिक्स यूथ समिट में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसका आयोजन रूस ने किया था। वैश्विक मंच से अपने देश की महान संस्कृति और इतिहास के बारे में बोलना शानदार अनुभव रहा। हाल ही में मुझे जी-20 की एक मीटिंग में अपने राज्य के प्रतिनिधित्व का भी मौका मिल रहा है।
मैंने केमिस्ट्री से MSc की थी, लेकिन लगा कि बोलती हूं तो कम्युनिकेशन की पढ़ाई करनी चाहिए। जिसके बाद मैं IIMC-दिल्ली से कम्युनिकेशन की पढ़ाई की। पढ़ाई के बाद मैं पब्लिक रिलेशन इंडस्ट्री में काम करने लगी।
2020 में राजपथ पर रिपब्लिक डे परेड में भी शामिल हुई
ये एक महीने का कैंप था। जिसमें हमें एक सख्त माहौल में ट्रेनिंग दी जाती है। क्या करना, क्या नहीं करना है; ये सब कुछ सिखाया जाता है। बोलने से लेकर बॉडी लैंग्वेज तक पर भी ध्यान देना होता है। मेरे लिए इस परेड का अनुभव जिंदगी बदलने वाला रहा। जिसने मेरा सेल्फ कॉन्फिडेंस बढ़ाया, सोचने का नजरिया बदला और मैंने यह सीखा और समझा कि देशभक्ति किसे कहते हैं और अपने आप को देश के प्रति कैसे समर्पित किया जाता है।
राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए सरकार की तरफ से आया फोन तो डर गई थी
NSS नेशनल अवॉर्ड हासिल करने के लिए आपको एक फाइल सब्मिट करनी होती है। अमूमन दो महीने में उसका रिजल्ट आ जाता है। लेकिन मेरे केस में साल भर तक कोई जवाब नहीं आया। मैं भी उसके बारे में भूल चुकी थी। जिंदगी आगे बढ़ रही थी।
एक दिन ऑफिस से आते हुए मैं मेट्रो में थी। तभी एक के बाद एक बहुत सारे फोन आने लगे, लेकिन नेटवर्क नहीं होने के कारण बात नहीं हो पा रही थी।
‘ट्रू-कॉलर’ पर कभी गवर्नमेंट तो कभी मिनिस्ट्री लिख कर आता था। मैं डर गई कि ये लोग मुझे इतना फोन क्यों कर रहे हैं? कहीं मुझसे कोई गलती तो नहीं हो गई है।
मैं मेट्रो स्टेशन की सीढ़ियों पर थी कि फिर कॉल आ गया। इस बार बात हुई तो पता चला मुझे NSS नेशनल अवार्ड के लिए सलेक्ट कर लिया गया है और मुझे ये पुरस्कार राष्ट्रपति के हाथों मिलेगा। सुनते ही मन खुशी से झूम उठा। जवाब देते भी नहीं बन रहा था। मैं वहीं मेट्रो की सीढ़ियों पर बैठ गई। कुछ मिनट बाद थोड़ी नॉर्मल हुई तो पहला फोन मम्मी और फिर पापा को किया। सब बहुत खुश हुए। पेरेंट्स का कहना था कि वो ये जानते थे कि उनकी बेटी क़ाबिल है और ये अवॉर्ड मुझे ही मिलेगा।
जब सबके सामने प्रेसिडेंट ने बोला- ‘कांग्रेचुलेशन’ तो लगा दुनिया भर की खुशी मिल गई
प्रेसिडेंट अवॉर्डीज को कई दिन पहले ही दिल्ली बुला लिया जाता है। अवॉर्ड मिलने से पहले राष्ट्रपति भवन में पूरी प्रैक्टिस होती है। कौन कहां बैठेगा, अवॉर्ड लेने कैसे चलकर जाएगा; ये सब बताया जाता है।
ड्रिल के दौरान तो सब कुछ नॉर्मल लगा, लेकिन अवॉर्ड लेने वाले दिन जब सामने राष्ट्रपति मैडम को बैठे देखा तो दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं। सामने मेरे और दूसरे अवॉर्डीज के पेरेंट्स, मिनिस्टर्स, ब्र्यूरोक्रेट्स बैठे थे। इन लोगों के बीच जब मेरा नाम बुलाया गया और मैं चल कर राष्ट्रपति मैडम के पास गई तो वो लम्हा मेरी जिंदगी के सबसे बेहतरीन लम्हा था।
अवॉर्ड देते हुए राष्ट्रपति मैडम ने मुस्कुराकर ‘कांग्रेचुलेशन’ कहा तो ऐसा लगा मानो मुझे पूरी दुनिया की खुशी एक साथ मिल गई हो।
जैसे मुझे दिल्ली में जम्मू की याद आती है, मम्मी-पापा को ऐसे ही कश्मीर की याद सताती है
मैं जम्मू में ही जन्मी और पली-बढ़ी। अब दिल्ली रहती हूं। यहां मुझे हमेशा जम्मू की याद आती है। ऐसा लगता है कि दिल्ली तो घूमने की जगह है; जहां से महीने दो महीने में घूम कर लौट जाना चाहिए। घर तो जम्मू में है।
मेरे मम्मी-पापा कश्मीरी पंडित हैं; उनका जन्म श्रीनगर हुआ। कई बार सोचती हूं कि उन्हें भी कश्मीर की याद उसी तरह आती होगी; जैसे मुझे जम्मू की आती है। खैर; मैं तो भाग्यशाली हूं कि जब चाहे जम्मू लौट सकती हूं; उनके पास वापस अपने घर जाने का ऑप्शन भी नहीं है।
मैं कई बार कश्मीर गई हूं। एक बार मम्मी-पापा मुझे श्रीनगर ले गए थे। डाउन टाउन इलाके में हमारा पुश्तैनी घर था। मैं अपने पुरखों की जगह देखना चाहती थी। लेकिन पापा बस बाहर से मुहल्ला दिखा कर लौटा लाए। शायद उनमें अपने उजड़े घर की तस्वीर देखने की हिम्मत नहीं थी।
कहने को हम ‘कश्मीरी पंडित’ हैं; लेकिन कश्मीर में अपनी जड़ें और अपने पुरखों का घर छूट चुका है। दुख इस बात का है कि अपने ही देश में अपने उजड़े घर का मलबा देखने को भी आंखें तरसती हैं। शायद यही हमारी नियति है। लेकिन क्या कभी वक्त बदलेगा? क्या मैं अपने पुरखों के घर में लौट पाऊंगी?
स्टोरी में आगे बढ़ने से पहले पोल पर अपनी राय देते चलें…
जम्मू के स्लम एरिया में सोशल वर्क करती थी, अब दिल्ली में करने का इरादा है
जम्मू में रहने के दौरान मैंने वहां के स्लम एरिया में लोगों के लिए काम किया। महिलाओं और बच्चों को बुरी स्थिति में देख मेरा मन कचोटता है। मुझे हमेशा लगता है कि इनके लिए कुछ करना चाहिए। मैं जो काम जम्मू में उनके लिए कर रही थी, वही यहां दिल्ली में भी करना चाहती हूं।
मैं चाहती हूं हर एक लड़की को पढ़ने का, अपनी मर्जी से जिंदगी जीने का हक मिले।
अपनी महिला साथियों को मैं यही कहना चाहूंगी कि आप चाहें जिंदगी के किसी मोड़ पर हों; आप सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं। आपको बस आगे बढ़ने और कुछ करने का हौसला दिखाना होगा।
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