‘क्या करती है, क्लब में नाचती है। इनका काम ही क्या सिवाय नाचने के। नाचने वाली, नचनिया और न जाने क्या-क्या तमगे लगाकर लोगों ने मुझे बदनाम किया, लेकिन मैं भी रुकी नहीं और अब पूरा शहर मुझे सलाम करता है।’
बदायुं में पली-बढ़ी 25 साल की सिम्मी नाजिर वुमन भास्कर से खास बातचीत में कहती हैं, ‘एक तो मैं जिस समुदाय से आती हूं, उसमें लड़कियों को आगे पढ़ने-लिखने या करिअर बनाने को लेकर बहुत ज्यादा मोटिवेट नहीं किया जाता।
8 बहनें और पिता का साया न होना
हम आठ बहनें और सिर पर अब्बा का साया न होने की वजह से हमें समाज में लानत-मलानत बाकी लड़कियों से ज्यादा झेलनी पड़ी। हम सभी बहनों को यह समझ आ गया था कि मां का सहारा हम बहनें ही हैं और घर भी हमें ही चलाना है।
बड़ी बहनों ने पहले काम शुरू किया। उनसे प्रेरणा लेकर मैं भी कुछ करना चाहती थी। मुझे बचपन से डांस का शौक था, लेकिन एक बार छठी क्लास में जब एक डांस कॉम्पीटिशन में पार्टिसिपेट करने गई तो टीचर ने यह कहकर बाहर निकाल दिया कि पहले डांस सीखकर आओ।
जब टीचर की बात बुरी लग गई
ज्यादा डांस का शौक है तो अपना खुद का ग्रुप बना लो। बस उनकी ये बात मुझे बुरी तो लगी ही साथ ही उसी दिन ठान लिया कि अब तो डांस सीखना भी है और ग्रुप भी बनाना है। मैं जली हुई लकड़ी की तरह स्कूल से चली आई।
मेरे पास स्मार्टफोन नहीं था, साउंड सिस्टम नहीं था, लेकिन जिन दोस्तों के पास स्मार्टफोन व अन्य सुविधाएं थीं, उनसे लीं और यूट्यूब की मदद से डांस सीखा भी और सिखाया भी। जब 15 साल की हुई तब तक लड़कियों का एक ऐसा ग्रुप बन गया था जिनके साथ मिलकर अगले कॉम्पीटिशन में हिस्सा लिया और जीती भी।
जब ग्रुेजुएशन में पहुंची तो जिले में एक डांस कॉम्पीटिशन हुआ। मैंने भी उसमें भाग लिया। उस प्रतियोगिता में पहले स्थान पर रही। ‘बदायूं क्लब’ संस्था के फाउंडर मेरे डांस से प्रभावित हुए और बोले तुम इसी क्लब में डांस सिखाना शुरू कर दो।
लोगों को समझ नहीं आता था मेरा काम
बस उसी क्लब से मेरे डांस के घुंघुरूओं की रुनझुन बूरे बदायूं को सुनाई देने लगी। हां, शुरुआत में मुझे लोगों ने खूब ताने दिए। उन्हें मेरा काम समझ नहीं आता था। उनके लिए मैं किसी क्लब में नाचने वाली लड़की थी, लेकिन मेरा परिवार मुझ पर भरोसा करता था, आगे बढ़ने के लिए मुझे इससे ज्यादा और क्या चाहिए था। 2015 तक ग्रुेजुएशन पूरी हो गई और एक क्लब से अब दूसरे स्कूलों में भी डांस सिखाना शुरू कर दिया।
चार साल अलग-अलग जगह नृत्य सिखाने के बाद 2017 में मैंने अपनी खुद की ‘स्टार शाइन क्रिएटिव एकेडमी’ शुरू कर दी। अब यहां हजारों की संख्या में बच्चे आते हैं। अभी फ्री समर कैम्प चल रहा है जिसमें हजार बच्चे शामिल हैं।
यह अकेडमी सिर्फ डांस अकेडमी नहीं है बल्कि मेहंदी,सिलाई, कम्यूटर, ब्यूटीशनियन और क्राफ्ट का काम भी सिखाती है। मेरी बहनें भी इस काम में मदद करती हैं।
अब सीख रही क्लासिकल डांस
अभी मैं क्लासिकल में प्रभाकर कर रही हूं। यानी डांस में एम कर रही हूं। एक वक्त था जब मेरे पास स्मार्टफोन नहीं था, लेकिन अब सबकुछ है। जो लोग मुझे ताना मारते थे, आज उन्हीं के बच्चे मुझसे डांस सीखते हैं। यहां तक कि मेरा वो स्कूल जिन्होंने मुझे डांस में हिस्सा लेने से मना कर दिया था, उस स्कूल में भी कोरियोग्राफर बनकर गई और एक साल काम किया।
खुशी की बात यह है कि अभी ‘वन बीएचके’ एक फिल्म आने वाली है जिसमें मुझे भी लिया गया है।
हुनर को बनाएं पहचान
हम बहनों ने अपना घर ही नहीं संभाला बल्कि जिन बच्चियों को हमारी जरूरत थी, हमने उनकी भी मदद की। कई मंचों पर बतौर जज भी आमंत्रित की जा चुकी हूं। अब मैं हर लड़की को यही कहूंगी कि आप इतने काबिल बनें कि आपको किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। साथ ही अपने हुनर को पहचानें और उसे ही करिअर बनाएं।
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