'आंखों में नमी लिए लड़कियां कातर निगाहों से मुझे देखती हैं तो मेरा दिल पिघल जाता है। ह्यूमन ट्रैफिकिंग और बाल विवाह से मैं कई लड़कियों को बचाती हूं। कई बार तो माता-पिता अधेड़ उम्र के आदमी से बच्चियों की शादी करना चाहते हैं ताकि इसके बदले उन्हें पैसे मिलें। मैं ऐसी बच्चियों को जिस्मफरोशी के दलदल से बचाती हूं।'
झारखंड के दुमका जिला से ताल्लुक रखने वाली समाज सेविका शाहिना ने वुमन भास्कर को खास बातचीत में बताया, 'उनकी परवरिश पढ़े-लिखे परिवार में हुई, मां और पापा दोनों वर्किंग थे। उन्होंने हमेशा हमारी पढ़ाई का ख्याल रखा। समाज की तरफ से शादी का पूरा दबाव था लेकिन मेरे पेरेंट्स ने ज्ञान प्राप्त करने पर जोर दिया।'
जेंडर इक्वलिटी के लिए किया काम
पापा मेडिकल फील्ड में थे, वो मुझे डॉक्टर बनते देखना चाहते थे। लेकिन जब मैं मां को स्ट्रगल करते देखती तो सोचती कि समाज में महिलाओं की स्थिति मजबूत करने के लिए काम करूं ताकि उनकी अलग पहचान बनें और वो किसी पर डिपेंड न रहें। समाज में महिला और पुरुष की बराबरी के लिए मेरे मन में हमेशा से कसमसाहट थी।
डॉक्टरी, पत्रकारिता की पढ़ाई छोड़ चुनी समाज सेवा
बिहार और झारखंड जब एक हुआ करते थे, मैं 19 साल की उम्र में मेडिकल की पढ़ाई के लिए पटना आई। लेकिन मन नहीं लगा, इसलिए मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई की और लिखने लगी। लेकिन मन अभी भी भटक रहा था। अंदर से आवाज आती कि तुम कुछ खास करने के लिए बनी हो। इसलिए मैंने समाज में महिलाओं की बेहतरी के लिए काम करना शुरू किया। तब मुझे संतुष्टि मिलनी शुरू हुई।
महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ी
मैंने समाज की केस स्टडी की, समझ में आया कि महिलाएं दो वर्गों में बंटीं हैं- एक ऑफिसर क्लास की महिलाएं जो आगे निकल जाती हैं, दूसरे वर्ग में वो महिलाएं आती थीं जो पढ़-लिख नहीं पातीं और जिनकी आवाज समाज दबा देता है। इस दोनों वर्गों की महिलाओं की लाइफस्टाइल में जमीन-आसमान का अंतर था। कम औरतें ही इंडिपेंडेंट थीं, ज्यादातर महिलाएं हाशिये पर थीं। तभी मैंने फैसला किया कि मैं जेंडर इक्वलिटी के लिए और महिलाओं के हक़-हुकूक के लिए ही काम करूंगी। इसे ध्यान में रखते हुए ही मैंने अपना सफ़र शुरू किया और सामाजिक क्षेत्रों से जुड़ गई।
महिलाओं को सशक्त बना रही
स्टडी के आधार पर मैंने जाना कि जब तक महिलाएं अपने हक़ की बात रखना नहीं सीखेंगी और इसके लिए औरतों के हाथ में फैसला लेने का आधिकार होना जरूरी है। घर, जिंदगी या गांव पंचायत में सुधार और बदलाव के लिए औरतों को सशक्त करना जरूरी है। मैं पिछले 40 सालों से गांव पंचायत में जीतने वाली महिलाओं को उनके हक़ के लिए खड़ा रहना और लड़कियों के लिए के लिए लड़ना सिखाती हूं। अपने और समाज के हक़ के लिए आगे आएं।
बच्चियों के चेहरे पर मुस्कान लाना मेरा उद्देश्य
बिहार में आज भी 40% लड़कियों का बाल विवाह हो जाता है। 10वीं कक्षा तक केवल 25 फीसदी लड़कियां ही पहुंच पाती हैं। कॉलेज जाने वाली लड़कियों को भी कई स्ट्रगल का सामना करना पड़ता है। पेरेंट्स पढ़ने से रोकते हैं। स्कूल-कॉलेज के रास्ते में मनचले छेड़ते हैं। कई की शादी कर दी जाती है। मेरे लिए लड़कियों के सपनों को जिंदा रखना और उनके मुरझाए चेहरे पर मुस्कान लाना मेरे लिए बेहद अहम है।
लड़कियों को बना रही मजबूत नागरिक
मैं 'द हंगर प्रोजेक्ट' वैश्विक संस्था से जुड़ी हूं। इसमें हम किशोरियों को संगठित करते हैं। हम उन्हें सेल्फ कांफिडेंस, सेल्फ लव और सेल्फ रेस्पेक्ट के बारे में बताते हैं। लड़कियों में स्वाभिमान की भावना जगाने के साथ ही हम उनकी ग्रोथ जर्नी शुरू करते हैं। हम उन्हें जीवन के छोटे-छोटे फैसले लेने के लिए तैयार करते हैं। लड़कियों को खुद को प्रायोरिटी पर रखने का सबक उनके मन में डालते हैं। ताकि लड़कियां अपनी ताकत को पहचानें और भविष्य के लिए एक मजबूत नागरिक के तौर पर उभर कर सामने आएं।
आत्मसम्मान और बराबरी से जीना सिखा रही
लड़कियों को बाल विवाह से बचाने के लिए हर उन्हें स्कूल भेजने पर काम करते हैं। इस मामले में हम अधिकारियों और सरकार से भी बात करते हैं। मेरी कोशिश रहती है कि लड़कियां कम से कम 10वीं और 12वीं तक की पढ़ाई करें ताकि वो आत्मसम्मान से जी सकें। हम लड़कियों को भारत का नागरिक होने का एहसास कराते हैं ताकि वो खुद को सबके बराबर समझ सकें।
समाज ने कसे ताने, माता-पिता ने दिया साथ
पितृसत्तात्मक समाज में मेरे पेरेंट्स ने मेरी पढ़ाई-लिखाई को लेकर कई ताने सुने। जैसे कि- लड़की है जल्दी शादी को, बाहर पढ़ने भेज रहो हो नाक कटाएगी या अकेली रह रही है, 10 लड़कों के साथ घूमती है, आपने लड़की की शादी नहीं की, क्या किया जीवन में। मेरे माता-पिता ने मुझे पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनाया कि आज मैं 3 हजार लड़कियों और महिलाओं को साक्षर बनाकर तैयार कर पाती हूं ताकि वो अपने फैसले ले सकें। समाज के सवालों का जवाब देने के लिए मैंने खुद को मजबूती से तैयार किया। अगर मैं भी बाकी लड़कियों की तरह तानों से डर कर बैकफुट पर चली जाती तो मैं महिलाओं के अधिकारों के लिए और उन्हें सशक्त बनाने के लिए काम नहीं कर रही होती।
खुद को तराश, लिखे नई इबारत
अगर आप मिडिल क्लास फैमिली से हैं और छोटे शहर से हैं तो आपको इन सवालों का सामना करना ही पड़ता है। आज मैं 40 प्लस हूं, सिंगल हूं और अपने शहर से दूर दूसरे शहर में रहती हूं। लेकिन अब मेरा स्ट्रगल ही मेरी प्रेरणा बन चुका है। समाज का प्रेशर और ताने एक तरफ और जिंदगी के मेरे एक तरफ। मैंने अपनी दुनिया खुद बनाई है। महिलाएं और बच्चियों के लिए मैं काम कर रही हैं वही मेरा परिवार हैं। आर्थिक तौर पर मजबूत हूं। नई इबारत लिखने के लिए समाज के बने-बनाए खांचे से निकल कर खुद को तराशना जरूरी है।
पल जब आंखों में आए आंसू
लोगों के लिए ये जिंदगी से किए समझौते और सैक्रिफाइस हैं। लेकिन मेरे लिए यही जिंदगी की वास्तविक खुशियां हैं। कई बार लड़कियों के फोन आते हैं कि मेरी शादी जबरन कराई जा रही है या पेरेंट्स मुझे पैसों के लिए सेक्स वर्क के लिए मजबूर कर रहे हैं तो अनायास ही मेरी आंखों में आंसू आ जाते हैं। उस पल लगता है कि ऐसी बच्चियों को इस दलदल से निकालकर पढ़ाना और उसकी जिंदगी संवारना ही मेरे लिए सबसे बड़ा काम है।
ट्रैफिकर ने दी धमकी, सरकार ने की मदद
कोविड काल में कई लड़कियों की ह्यूमन ट्रैफिकिंग हुई। कई लड़कियों ने बचाव के लिए कॉल किया। प्रशासन के जरिए मैंने उन्हें बचाने की कोशिश की, बिहार सरकार ने मेरा पूरा साथ दिया। इस दौरान ट्रैफिकर ने मुझे काफी परेशान किया। ट्रैफिकर ने मेरा नंबर तक ट्रैक किया और मुझे धमकी भरे फोन आते कि आप लड़कियां सप्लाई कीजिए।
कंट्रोल में रहना नहीं सम्मान से जीना सिखाएं
समाज ने लड़कियों से इज्ज़त के दायरे में घेर कर रखा है, इससे बाहर निकलना और अपनी पहचान बनाना बेहद जरूरी है। अधिकतर भारतीय परिवारों में युवा लड़के अपनी बहनों को पेरेंट्स से ज्यादा कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं। लड़कियों को आत्मसम्मान से जीना सिखाना है ताकि वो खुद के लिए खड़ी हो सकें। कंट्रोल करने से वो खुद को एक फ्रेम में समेट लेंगी और उनका विकास रुक जाएगा।
व्यक्तित्व को निखारती हूं
कई बार लड़कियां जब आड़ी-तिरछी रेखाओं से फूल बनाकर दिखाती हैं और मैं उनकी पीठ थपथपाती हूं तो उनकी आंखों में झलकने वाली खुशी का मुकाबला दुनिया के किसी हीरे से भी नहीं किया जा सकता है। हर लड़की और महिला खास है, जरूरत है उसे समझने और ठीक ढंग से तराशने की।
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