आज कहानी जयपुर के एक छोटे से गांव में रहने वाली मेघा नरुका की। जो कमजोर महिलाओं की हिम्मत बनीं। उनको आत्मविश्वासी बनाया। उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया। आज वही महिलाएं अपना बिजनेस कर अच्छी आमदनी कर रही हैं।
मैं जयपुर के एक छोटे गांव की राजपूत परिवार की बेटी हूं। जयपुर यूनिवर्सिटी से एमएससी स्टैटिस्टिक्स में किया। मेरी शादी ऐसे गांव में हुई जहां लोग आज भी घूंघट प्रथा को तरजीह देते हैं। शादी के बाद मुझे नौकरी की इजाजत नहीं मिली। जबकि शादी से पहले मैंने कई कॉलेज में पढ़ाया। बच्चों और परिवार की जिम्मेदारी के चलते पीएचडी पूरी नहीं कर सकी। मेरे दिमाग में सिर्फ एक ही सवाल चलता था कि इतना पढ़ने लिखने के बावजूद मैं कर क्या रही हूं।
पापा से मिली प्रेरणा, पति ने किया सपोर्ट
पिता प्रोफेसर थे, पापा को समाज के लिए काम करते देख बड़ी हुई। पति के साथ दुनिया देखी लेकिन देश की महिलाओं के लिए कुछ करने की चाहत मुझे वतन वापस खींच लाई। शुरू में परिवार और गांव के लोगों को लगता था कि मैं क्या कर रही हूं। लेकिन पति ने साथ दिया। अब गांव के लोग भी हमारे साथ कंधे से कंधा मिलकर खड़े हैं।
फिलीपींस से देश वापसी
2009 से 2012 के दौरान मैं फिलीपींस में थी। अन्ना हजारे का मूवमेंट देश में चल रहा था तब इसमें भाग लेने के लिए मैं भी भारत आई। अन्ना हजारे आंदोलन के बाद हमने 2013 में प्योर इंडिया ट्रस्ट बनाया। उद्देश्य था लोगों को शिक्षा से रोजगार देना। मैंने 10 राज्यों की 800 महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा किया। तीन हजार से ज्यादा महिलाओं को माहवारी, बिजनेस और फाइनेंशियल से जुड़ी ट्रेनिंग और वर्कशॉप कराया।
घरेलू महिलाओं का सम्मान
महिलाएं 13 से 16 घंटे काम करती हैं। बावजूद इसके परिवार में उन्हें सम्मान नहीं मिलता जिसकी वो हकदार हैं। हालांकि महिलाओं को घरेलू काम के लिए कोई मेहनताना नहीं मिलता। ये आर्थिक रूप से अपने पति, पिता या बेटे पर ही आश्रित होती हैं। जिसकी वजह से उनमें आत्मविश्वास की कमी होती हैं। कई महिलाएं हमारे साथ मिलकर आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं। लेकिन परिवार का सपोर्ट न मिलने के कारण जरूरतमंद महिलाएं आगे नहीं बढ़ती। कई बार बिजनेस फेल होने के डर से भी वो नौकरी करना ज्यादा पसंद करती हैं।
50 लाख सालाना आमदनी
महिलाएं आज सब्जी की दुकान, ब्यूटी पॉर्लर, टिफिन सेंटर, सिलाई कढ़ाई का काम, किराना की दुकान अच्छी तरह चला रही हैं। जो कभी दूसरों पर आश्रित थीं आज 50 लाख रूपए सालाना की आमदनी कर रही हैं। हम बाजार में भी उनकी पहचान करवा रहे हैं। ताकि वो अपना सामान एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकें।
चार दिवारी में रहकर बनी उद्यमी
प्योर इंडिया ट्रस्ट के जरिए मैंने कमजोर महिलाओं को उन्हीं के घर में उद्यमी बनाने की ठानी। महिलाएं आज सब्जी की दुकान, ब्यूटी पॉर्लर, टिफिन सेंटर, सिलाई कढ़ाई का काम, किराना की दुकान अच्छी तरह चला रही हैं। जो महिलाएं दूसरों पर आश्रित थीं आज मोटी कमाई कर रही हैं। हम बाजार में भी उनकी पहचान करवा रहे हैं ताकि वो अपना सामान एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकें।
चेंज लीडर चलाती हैं जागरूकता कैंप
प्योर इंडिया ट्रस्ट गांव की महिलाओं को चेंज लीडर बनाकर जागरूकता कैंप और बच्चों को स्कॉलरशिप दिलाने का काम करती है। साथ ही करियर वर्कशॉप भी करवाते हैं। हम यह काम अलग-अलग कंपनी के सीएसआर साथ मिलकर करते हैं। कंपनी के मुताबिक हमें एरिया और काम तय करना पड़ता हैं। जबकि गांव के लोगों को मदद की ज्यादा जरूरत होती हैं। यहां पर हमारे लिए परेशानी हो जाती हैं की एरिया के हिसाब से काम करना पड़ता है।
आत्मनिर्भर = सम्मान
महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए हम कई तरह के प्रोग्राम और दौरे करते रहते हैं। जिससे वो मोटिवेट हों और नई चीजें सीख कर अपने बिजनेस को बढ़ा सकें। महिलाएं पारिवारिक जिम्मेदारियाेें में इतनी उलझी रहती हैं कि वो समय पर पहुंच कर ट्रेनिंग में हिस्सा नहीं ले पातीं। जिसके चलते उनका बिजनेस कामयाब नहीं हो पाता।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.