मुंबई की उर्वशी शाह और रुपा संपत पिछले 20 साल से दोस्त हैं। 6 साल पहले इन दोनों ने अगरबत्ती का बिजनेस शुरू किया। इनका मकसद था खुद की पहचान बनाना और उन महिलाओं को रोजगार देना, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। आज इनकी अगरबत्ती न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी एक्सपोर्ट होती है।
हम दोनों का अलग-अलग बैकग्राउंड है
रूपा- मैं एक सिंगल मदर हूं। मैंने 2012 में अपने हस्बैंड को खो दिया था। तब मैं 35 साल की थी और मेरा बेटा 12 साल का। उस समय मैं अपने हस्बैंड के साथ उनके बिजनेस में हाथ बंटाती थीं। अचानक मेरी जिंदगी बदल गई।
ढाई साल तक मैं शॉक में थी लेकिन हस्बैंड का बिजनेस संभालना भी जरूरी था। उस समय मैं क्या करूंगी, कैसे जिंदगी चलाऊंगी कुछ समझ नहीं आ रहा था। मुझे जिंदगी चलाने के लिए पैसों की जरूरत भी थी क्योंकि बिजनेस ठीक नहीं चल रहा था। मैं कभी नहीं चाहती थी कि मेरा बेटा सोचे कि हमारा घर किसी और व्यक्ति की मदद से चल रहा है। मुझे पता था कि मुझे ही अपने घर को संभालना है तो क्यों न मैं बहुत मेहनत करूं।
बेटे ने हमेशा मुझे अपने पापा के साथ काम करते देखा था। उस समय मेरे सामने एक चैलेंज यह था कि जिस बच्चे ने अपने पापा को खोया है, मैं उसके साथ रहूं लेकिन कमाना भी जरूरी था। मैं खुद को लकी मानती हूं कि मेरे पास फैमिली और फ्रेंड्स का सपोर्ट है।
उर्वशी-मैं हमेशा से वर्किंग रही हूं। हस्बैंड के बिजनेस से भी जुड़ी। महिलाओं के विकास के लिए सोशल वर्क भी किया।
मेरी 2 बेटियां हैं। जब मैंने अगरबत्ती का बिजनेस शुरू किया तब तक उनकी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। दोनों ही मेरी हिम्मत बनीं। उन्होंने कहा कि मां आपको जो करना आप कीजिए, हम आपके साथ हैं।
उस समय हम फाइनेंशियल लॉस से गुजर रहे थे। इसलिए मैंने अगरबत्ती का बिजनेस शुरू किया। हमारी कंपनी का नाम ‘शुभ एशियाटिक फ्रेग्नेंस’ है। हालांकि, पहले मेरी फैमिली सोचती थी कि अगरबत्ती का काम करने का मतलब है चिंदी धंधा। धीरे-धीरे उनकी सोच बदली।
बच्चों के प्ले ग्रुप में हुई थी मुलाकात
हम दोनों ही काम को लेकर बहुत पैशनेट हैं। जब हमारे बच्चे ढाई साल के थे, तब हमारी पहली मुलाकात उनके प्ले ग्रुप में हुई थी। धीरे-धीरे हम दोस्त बन गए।
आसान नहीं था अगरबत्ती का बिजनेस
जब हमने अगरबत्ती का बिजनेस शुरू किया, तब इस इंडस्ट्री में न के बराबर महिला आंत्रप्रेन्योर थीं। मैन्युफैक्चरर पुरुष ही थे। वह कई जेनरेशन से इस बिजनेस से जुड़े हुए हैं। ऐसे में हमारा मकसद अपनी पहचान के साथ ही समाज के उस तबके की महिलाओं को रोजगार देना भी था जिन्हें आर्थिक मदद चाहिए।
हमने कई महिलाओं को ट्रेनिंग दी, उन्हें सामान की मार्केटिंग के गुर सिखाए और उन्हें नौकरी दी।
अगरबत्ती के जरिए हर घर से जुड़ना चाहते थे
अगरबत्ती पूजा-पाठ से जुड़ी हुई है। हम इसके जरिए हर घर से जुड़कर उन्हें महकाना चाहते थे।
अच्छी खुशबू इंसान के चेहरे पर खुशी लाती है और उन्हें पॉजिटिव बनाती है। अगरबत्ती मेडिटेशन का भी काम करती है। पूजा में अगरबत्ती जलाना हमारा हमारा ट्रेडिशन भी है इसलिए हम इस काम से जुड़े।
डिस्ट्रीब्यूटर महिला समझकर नहीं करना चाहते थे काम
जब हमने यह बिजनेस शुरू किया तो लोगों को लगता था कि ये दोनों महिलाएं हैं, कारोबार नहीं कर पाएंगी। डिस्ट्रीब्यूटर, होल सेलर के दिमाग में था कि हम टाइम पास कर रही हैं और इस बिजनेस में लंबे समय तक टिक नहीं पाएंगी। किसी ने हमें गंभीरता से नहीं लिया।
हमें अगरबत्ती के लिए सप्लायर ढूंढने में बहुत समय लगा। काफी बार हमें रिजेक्शन मिली। कई बार डिस्ट्रीब्यूटर अपने ऑफिस में एंट्री भी नहीं करने देते थे।
कोई हमारे साथ मीटिंग तक नहीं करना चाहता था। लेकिन हमें खुद पर विश्वास था। हमें उन लोगों को भी अपने विश्वास में लाना पड़ा कि हम उनमें से एक है। उनसे अलग नहीं है।
2 साल तक खुद इस बिजनेस को समझा
हमने अगरबत्ती का काम शुरू करने के लिए रिसर्च की। एक कंसल्टेंट से हमने 2 साल तक फ्रेग्नेंस पर काम करना सीखा। हमने कई गांव-शहरों में जाकर डिस्ट्रीब्यूटर से बात की।
बाजार में सब चंदन, मोगरा, गुलाब की फ्रेग्नेंस की अगरबत्ती बेच रहे थे। हमने खीर, अनानास, लैवेंडर, कपूर, मिक्स हर्ब की आयुर्वेद गोल्ड जैसी अगरबत्ती बनाईं। आज हमारे 200 प्रोडक्ट्स हैं।
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