‘उम्र 66 हो गई है, लेकिन 16 बरस के किसी युवा से कम ऊर्जा नहीं है। खूब हंसती हूं, सजती हूं, संवरती हूं, मंथन करती हूं। हर रिश्ते को पूरी जिम्मेदारी से निभाया। कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया।’
मध्यप्रदेश के सतना में जन्मी डॉ. ममता नौगरैया वुमन भास्कर से खास बातचीत में कहती हैं, ‘आजकल के बच्चे सोशल मीडिया पर लाइक्स बटोरने में लगे रहते हैं और मैं उसी समय में खूब पढ़ती हूं और किताबें लिखती हूं। अपनी उम्र की वजह से कभी किसी से पीछे नहीं रहना चाहती।
पढ़ाई के दौरान ही हुई शादी
मेरे पिता जी सेंट्रल में थे और मेरी मां अपने समय की हाई स्कूल पास थीं। पिता जी जब जबलपुर आ गए। तब बीए तक की पढ़ाई वहीं से हुई। हां, एक बार बीए में एक पेपर में फेल भी हुई, बीए के दौरान ही मेरी शादी हो गई। मैं स्नातक ही कहलाई।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की गोद ली हुई बेटी मेरी सगी मामी (शारदा) हैं। वो अब इस समय दुनिया में नहीं हैं। ससुराल पक्ष में मेरे हसबैंड की बुआ और मेरी बुआ सास मैथिलीशरण गुप्त के भतीजे को ब्याहीं गईं। अब सोचती हूं तो लगता है कि मेरी शादी भी बड़ी चुनकर हुई कि पहुंचे हुए साहित्यकारों के परिवार में पहुंची। हा हा हा…
मां कहती थीं कि मैं सबसे छोटी हूं इसलिए मेरी शादी दूर नहीं होगी, लेकिन कुदरत का नियम देखिए मेरी छह बहनें वहीं जबलपुर में ही हैं और मैं सबसे दूर झांसी में हूं। मैथिलीशरण गुप्त की भतीज बहू (भारती देवी) के घर चिरगांव में मेरी शादी हुई। शादी के बाद मैं ससुराल (झांसी) आ गई।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त से मुलाकात
दद्दा जी यानी मैथिलीशरण गुप्त से मेरे पति की खूब जमती। इसलिए जब भी छुट्टी मिलती तो सीधे दद्दा से मिलने पहुंच जाते। इसलिए पति को हिंदी से बहुत प्रेम रहा कि अगर हम घर में तौलिया, थैंक्यू भी बोल दें तो नाती-नातीन से लेकर मुझे भी डांट पड़ जाती है। हा हा हा… इसलिए हम बिल्कुल शुद्ध हिंदी में बात करते हैं।
पति का मानना है कि अगर हमीं हिंदी नहीं बोलेंगे तो आने वाली पीढ़ी क्या सीखेगी। शादी के बाद मैंने कोई पढ़ाई नहीं की। घर संभालने लगी। पति भी सरकारी डॉक्टर बन गए। मेरे तीन बेटे हुए। गृहस्थी जब थोड़ा संभलने लगी तब मैंने पास-पड़ोस, समाज देखना शुरू किया।
हर तरफ मुझे परेशान लड़कियां दिखीं। जिसको बेटा होता वो खुशी मनाते, जिसको बेटी का भ्रूण मिल जाता, उसका अबॉर्शन करवा दिया जाता। बेटियां कितनी ही मेहनत करें, वो फिर भी कमतर ही मानी जातीं। इन सभी चीजों को देखकर मैं भीतर ही भीतर कुढ़ती रहती।
कैसे उपजी पहली कविता
इसके बाद मैंने पहली कविता ‘मैं एक लड़की हूं’ लिखी। 1996 से 2014 तक कविताएं लिखती रही, लेकिन कहीं छापी नहीं। उन्हें बॉक्स में ही रखती रही, लेकिन 2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी जी का एक भाषण सुन लिया तो उसके बाद तो लगा कि ‘निर्वाण’ की प्राप्ति हो गई। उस भाषण से ऐसी प्रभावित हुई कि 15 महीने में 69 कविताएं लिख डालीं।
मैं मोदी जी से इतना प्रभावित हुई कि अब तक उन पर 60 कविताएं लिख चुकी हूं और 7 किताबें लिखी हैं। जब भी उनका ध्यान करती हूं तो मेरी कलम रुकती नहीं और जब ध्यान नहीं कर पाती तो एक लाइन नहीं लिख पाती। अब तक मैं बच्चे, महिला और बुजुर्गों पर 65 किताबें लिख चुकी हूं।
मोदी जी, योगी जी और राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद तीनों पर कविताएं लिखी हैं और उन्हें भेजी भी हैं। हर रक्षाबंधन पर प्रधानमंत्री मोदी को राखी भी भेजती हूं और वहां से आशीर्वाद आता है।
किताब भी सूचना भी
मेरी कई किताबें विचारों के साथ-साथ सूचना भी देती हैं। जिनमें से कुछ किताबें ऐसी हैं जिनमें मंत्रालयों का पता, ई-मेल और नंबर दिया है, ताकि पीड़ित महिला को मदद मिल सके। अब तक मैं कुल 65 किताबें लिख चुकी हूं और 155 अवॉर्ड मिल चुके हैं। मेरी एक कविता ‘कल बचाओ जल बचाओ’ में 17 हजार 500 शब्द हैं जिसके लिए मुझे इंटरनेशनल अवॉर्ड भी मिला।
इतनी उम्र होने पर भी मेरा पढ़ना कम नहीं होता। कई बार तो किसी किताब के लिए रात-रात भर पढ़ती रहती हूं। लेखन के अलावा मैंने समाज सेवा भी की है। मैं प्रकृति फाउंडेशन से जुड़ी और समाज के लिए भी काम किया।
जड़ों की ओर लौटें
मेरे पति ही मेरे लिए मोटिवेशन हैं, क्योंकि वे मेरी कोई भी रचना पहली बार में पसंद नहीं करते। जब तक उन्हें पसंद नहीं आती तब तक वे उसे अप्रूव नहीं करते। आज मेरे तीनों बेटे अच्छी जगहों पर सेटेल्ड हैं। पोते-पोतियों के बीच जीवन खुशहाल बीत रहा है।
अब मैं हर किसी को यही संदेश देती हूं कि अपनी जड़ों को ना भूलें। उन्हीं से फलदार वृक्ष बनेगा। मैंने अपने अब तक जीवन में जो चाहा वो कर लिया। खूब घूमी। यहां तक कि अमेरिका भी अकेली ही होकर आई। अब लिखते-पढ़ते जीवन बीत जाए, ईश्वर से यही कामना है।
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