• Hindi News
  • Women
  • This is me
  • When The Condition Of The House Worsened, She Started Delivering Goods To The Houses, Now I Am 'Christmas Baba'

बेटियों को डॉक्टर-इंजीनियर बनाने के लिए बनी डिलीवरी गर्ल:घर के हालात खराब हुए तो घरों में पहुंचाने लगी सामान, अब हूं ‘क्रिसमस बाबा’

नई दिल्ली2 महीने पहलेलेखक: मृत्युंजय कुमार
  • कॉपी लिंक

‘डिलीवरी बॉय’ यह शब्द आपने रोजमर्रा की जिंदगी में अक्सर देखा-सुना होगा। कुछ भी खाने-पीने या पहनने का सामान भी जरूर मंगाया होगा तो ‘डिलीवरी बॉय’ से अपने ऑर्डर भी रिसीव किया होगा। लेकिन कभी आपके मन में ख्याल आया कि ‘डिलीवरी बॉय’ ही क्यों? 'डिलीवरी गर्ल’ क्यों नहीं?

अगर आप यह सोच रहे हैं कि प्रोडक्ट्स डिलीवरी का काम सिर्फ पुरूष ही करते हैं; तो आपको प्रियंका चौहान की कहानी जाननी चाहिए।

3 बच्चों की मां प्रियंका अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए एक ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म के लिए डिलीवरी गर्ल का काम करती हैं। इस काम ने उनकी आजादी और उनके बच्चों के सपनों के दरवाजे खोले हैं।

आज के ‘ये मैं हूं’ में कहानी डिलीवरी गर्ल प्रियंका चौहान की। जो उन्होंने वुमन भास्कर को बताया।

प्रियंका जिस कंपनी के लिए काम करती हैं, वहां ज्यादातर पुरुष ही काम करते हैं।
प्रियंका जिस कंपनी के लिए काम करती हैं, वहां ज्यादातर पुरुष ही काम करते हैं।

अपने बच्चों के सपने को पूरा करना चाहती थी

10 साल पहले मेरी शादी हुई थी। आगे चलकर तीन बच्चे भी हुए। लेकिन घर में आमदनी इतनी नहीं थी कि सब कुछ आराम से किया जा सके। दूसरी तरफ, मैंने सोच लिया था कि अपने बच्चों की परवरिश बढ़िया तरीके से करूंगी। जो चीजें मैं नहीं कर पाई, मेरे बच्चे उसके मोहताज नहीं रहेंगे। मैंने फैसला कर लिया था कि अपने बच्चों को एक अच्छी जिंदगी दूंगी।

मैं अपने बच्चों के सारे सपने पूरा करना चाहती थी। लेकिन यह सब कुछ इतना आसान नहीं था। इसके लिए मुझे कुछ न कुछ करना पड़ता; अपने परिवार की आमदनी बढ़ानी थी।

डिलीवरी बॉय को देखकर आया ख्याल

मैं कुछ करने की सोच ही रही थी। लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। दूसरी ओर, मेरी पढ़ाई भी 12वीं तक ही हुई थी, ऐसे में मेरे लिए ऑप्शन भी कम हो गए थे। मैं सोच ही रही थी कि इन्हीं दिनों एक ‘डिलीवरी बॉय’ को प्रोडक्ट डिलीवरी करते देखा। मैंने ऐसा पहले भी कई बार देखा था, लेकिन इस बार मैं काम की तलाश में थी तो मुझे लगा कि मैं ये काम कर सकती हूं।

स्टोरी में आगे बढ़ने से पहले इस पोल पर अपनी राय साझा करते चलिए...

स्कूटी चलाना सीखा था, वो आया काम

घर-परिवार और बच्चों को संभालते हुए ही मैंने स्कूटी चलाना सीख लिया था। वो आगे चलकर मेरे काम आया। प्रोडक्ट डिलीवरी में टू व्हीलर ड्राइव करना सबसे जरूरी होता है। मेरे पास एक स्कूटी भी थी। ऐसे में मैंने मन बना लिया कि मुझे ‘डिलीवरी गर्ल’ ही बनना है।

मैंने एक परिचित की मदद से इस बारे में पता लगाया। एक कंपनी के बारे में मालूम चला। मैंने वहां जाकर इंटरव्यू दिया। उन्होंने मेरा टेस्ट लिया। स्कूटी चलाने के बारे में पूछा। सब कुछ सही होने के बाद मुझ ‘डिलीवरी गर्ल’ का काम मिल गया।

प्रियंका अपने बच्चों को एक बढ़िया जिंदगी देना चाहती हैं। जिसके लिए वो मेहनत कर रही हैं।
प्रियंका अपने बच्चों को एक बढ़िया जिंदगी देना चाहती हैं। जिसके लिए वो मेहनत कर रही हैं।

कभी-कभी लगता है मैं क्रिसमस वाला बाबा हूं

क्रिसमस के दिनों में एक बाबा लोगों को गिफ्ट बांटते चलते हैं। लोगों तक उनका प्रोडक्ट पहुंचाकर मुझे भी ऐसा ही लगता है। कोई कपड़े मंगाता है तो कोई इलेक्ट्रॉनिक सामन या कॉस्टमेटिक। जब लोगों के हाथ में सामान पहुंचता है तो उनके चेहरे पर एक खुशी चमक जाती है। जिससे मुझे लगता है कि मैं भी क्रिसमस वाले बाबा की तरह हूं। लोगों तक उनकी खुशियां पहुंचा कर अच्छा लगता है।

चुनौतियां भी हैं, लेकिन आगे बढ़ने के लिए करना पड़ेगा

ऐसा नहीं है कि मेरे काम में सब कुछ अच्छा ही है। कई बार मुश्किलें भी आती हैं। लेकिन अगर मुझे आगे बढ़ना है, अपने बच्चों को और पूरे परिवार को आगे ले जाना है तो मुझे ये काम करना ही पड़ेगा। स्कूटी पर बड़े-बड़े बैग लादकर गलियों के चक्कर लगाना आसान काम नहीं।

कई बार प्रोडक्ट डिलीवरी करने जाती हूं तो पता चलता है कि घर पर कोई है ही नहीं या ऑफिस के पते पर गई तो पता चला कि बंदा आज ऑफिस आया ही नहीं। ऐसे में एक प्रोडक्ट को डिलीवरी करने के लिए कई-कई चक्कर काटने पड़ते हैं। दूसरी ओर, हम पर टारगेट पूरा करने का दबाव भी होता है। ऐसे में काम में कोताही नहीं कर सकती।

सर्दी हो या धूप-बरसात; मुझे बाहर निकलकर काम करना ही पड़ता है। जिसे प्रोडक्ट डिलीवरी की जो तारीख मिली है, उसी तारीख को हमें सामान उस तक पहुंचाना होता है।

प्रियंका जिस काम को कर रही हैं,उसमें बहुत कम महिलाएं हैं। ऐसे में कई बार उन्हें दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है।
प्रियंका जिस काम को कर रही हैं,उसमें बहुत कम महिलाएं हैं। ऐसे में कई बार उन्हें दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है।

बेटा फौजी और बेटियां डॉक्टर-इंजीनियर बनना चाहती हैं

जब मैंने डिलीवरी गर्ल का काम करना शुरू किया। मुझे मेरे पति और फैमिली के बाकी लोगों का काफी साथ मिला। उनके साथ के बिना शायद ये काम मैं कभी नहीं कर पाती। जब मैं काम पर होती हूं तो फैमिली मेरे बच्चों की केयर करती है। मेरा बेटा फौज में जाना चाहता है। जबकि मेरी बेटियों का सपना है कि वो डॉक्टर और इंजीनियर बनें। मेरे बच्चों का सपना ही अब मेरा भी सपना है। जिस दिन वो अपना सपना पूरा कर लेंगे, मैं भी खुद को सफल मान लूंगी।

महिलाएं चाहें तो कुछ भी कर सकती हैं

कुछ काम ऐसे होते हैं, जिनके बारे में हम मान कर चलते हैं कि वो पुरुषों का काम है। लेकिन ये सोच ठीक नहीं। अगर हम महिलाएं ठान लें और हमें रोका नहीं जाए; तो हम कुछ भी कर सकते हैं। कोई भी काम केवल महिलाओं का या पुरुषों का नहीं होता। काम, काम होता है। जिसे जो काम पंसद आए, उसे वही करना चाहिए। न किसी से जबरदस्ती किया जाना चाहिए और न ही किसी को काम करने से रोका जाना चाहिए।

खबरें और भी हैं...