अमेरिका के
बड़े शहर फीके पड़े,
छोटे शहरों में चमक 

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बड़े शहरों से अमेरिकियों का मोहभंग होने लगा है।
मिडिल क्लास अमेरिकियों को लगने लगा है कि
अब मेट्रो शहरों में रहने की जरूरत नहीं रह गई है।
वे अब छोटे कस्बों में बसने लगे हैं।

1990 के बाद पहली बार 10 लाख से
ज्यादा जनसंख्या वाले अमेरिका के 56 बड़े शहरों
की आबादी घटी है। इन शहरों में रियल एस्टेट
कारोबार भी घाटे में चला गया है। 

बड़े शहरों में घरों की कीमत घट रही है।
मेट्रो शहरों के कई रियल एस्टेट प्रोजेक्ट रोक
दिए गए हैं। हजारों फ्लैट खाली पड़े हैं।

दरअसल, दुनिया का अर्थशास्त्र बदल रहा है।
वर्क फ्रॉम होम मॉडल सफल है। आईटी,
फाइनेंस, रियल एस्टेट और एंटरटेनमेंट सेक्टर
के लोग बड़े शहर छोड़ रहे हैं।

लाखों की संख्या में शहर छोड़ने वाले
ज्यादातर लोग पेशेवर हैं। इनकी सैलरी औसत से
ज्यादा है। ये लोग बड़े करदाता थे। इनके जाने से
शहरों के राजस्व में भारी कमी आई है।

न्यूयॉर्क-वॉशिंगटन जैसे बड़े शहरों को
मिलने वाला संपत्ति कर भी घट गया है।
ऑफिस और होटल टैक्स में भी काफी कमी
हो गई है। जबकि कस्बे धनी होते जा रहे हैं। 

अर्थशास्त्री निकोलस ब्लूम कहते हैं-
इससे अमेरिकी शहरों का बोझ कम हो रहा।
महंगाई घटेगी। कम आय वाले लोगों के लिए
मेट्रो शहरों में जिंदगी ज्यादा आसान होगी।

सिर्फ अमेरिका के शहर ही नहीं खाली हो रहे,
बल्कि उत्तरी यूरोप का भी यही हाल है। स्वीडन,
ब्रिटेन, डेनमार्क, फिनलैंड, नॉर्वे जैसे देशों में
पेशेवर लोग बड़े शहर छोड़ रहे हैं। 

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