सर्दियों में आपने कई लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि उन्हें अधिक ठंड लग रही है जबकि एक ही जगह पर रहने वाले दूसरे लोगों को उतनी ठंड नहीं लगती।
इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है। ठंड लगने पर सबसे पहले स्किन में मौजूद नर्व्स फर्स्ट लाइन ऑफ डिफेंस का काम करती है। वे तुरंत इसकी सूचना ब्रेन को पहुंचाती हैं।
टेंपरेचर गिरने की सूचना मिलते ही ब्रेन हमारी ब्लड वेसल्स को सिग्नल भेजता है कि स्किन में जा रहे ब्लड को रोका जाए।
यही कारण है कि जब सिहरन वाली ठंड पड़ती है तो पैर या हाथ का अंगूठा सफेद पड़ जाता है। वहां ब्लड की सप्लाई कम हो जाती है।
इस प्रक्रिया को वैस्कोकांस्ट्रिक्शन कहते हैं जिसमें स्किन में ब्लड सप्लाई कम कर हीट लॉस होने से रोका जाता है। ऐसा करके शरीर के दूसरे अंगों की रक्षा हो पाती है।
जब स्किन में ब्लड की सप्लाई कम होती है तभी हमें सिहरन होती है। इसे हम कहते हैं कि रोएं खड़े हो गए।
किसी व्यक्ति को कम तो किसी को अधिक ठंड लगती है। बड़े डील-डौल वाले लोगों को छोटे कद के लोगों की तुलना में अधिक ठंड लगती है।
स्किन के नीचे एडिपोज टिश्यूज यानी बॉडी फैट होती है। फैट इंसुलेशन का काम करती है। जिसमें फैट अधिक, उसे ठंड कम लगती है।
महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम ठंड लगती है। इसमें बॉडी फैट की भूमिका होती है। सर्दियों में पीरियड्स के दौरान महिलाओं को कभी कम तो कभी अधिक ठंड लगती है।