हर सेकेंड
एक ट्रक जितने कपड़ों
की बर्बादी
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फैशन हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा
बन गया है। कुछ साल पहले तक जहां हम एक
कपड़े को औसतन 120 बार पहनते थे, वहीं अब
ये आंकड़ा घटकर आधा हो गया है।
क्या आप जानते हैं कि ‘फास्ट फैशन’
की वजह से कैसे धरती सस्ते कपड़ों की
महंगी कीमत चुका रही है।
‘फास्ट फैशन’ यानी ऐसे कपड़ों को
डिजाइन करना, जो स्टाइलिश होने के साथ-साथ
बेहद सस्ते हों। ‘फास्ट फैशन’ का नाम सबसे पहले
न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस्तेमाल किया।
कपड़े बनाने के लिए कॉटन का इस्तेमाल
किया जाता है, जिसे उगाने के लिए बहुत
ज्यादा पानी की जरूरत होती है।
भारत में एक किलो कपास की खेती में
22 हजार 500 लीटर पानी की खपत होती है।
कपड़ा इंडस्ट्री दुनिया भर में पानी की 20 प्रतिशत
बर्बादी के लिए जिम्मेदार है।
एक टीशर्ट बनाने में 2700 लीटर
पानी लगता है, एक जींस बनाने में
7500 लीटर पानी की खपत होती है।
हर सेकेंड एक कचरे के ट्रक जितना कपड़ा
या तो जला दिया जाता है या जमीन में गाड़ दिया
जाता है। कपड़ों के वेस्ट के कारण सालाना
35,618 अरब रुपए का नुकसान होता है।
कपड़ों के वेस्ट का सीधा असर पर्यावरण
पर पड़ता है, क्योंकि कपड़े को पूरी तरह से खत्म
होने में 200 साल का समय लगता है।
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