214 फीट
ऊंचा मंदिर,
रोज बदलता है ध्वज

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भगवान जगन्नाथ की नगरी पुरी में रथ यात्रा के
लिए रथ बनाने की तैयारी शुरू हो चुकी है। रथ
के लिए लकड़ियां इकट्ठी की जा रही हैं। 

करीब 2 महीने बाद रथ तैयार हो जाएंगे।
उसके बाद 9 दिनों की रथ यात्रा का
आगाज होगा। 

जगन्नाथ पुरी में हर दिन मंदिर का ध्वज बदला
जाता है। इसमें एक दिन भी चूक नहीं होती है।
मान्यता है कि अगर एक दिन ध्वज नहीं बदला गया
तो 18 साल के लिए मंदिर बंद हो जाएगा।

मंदिर के मुख्य द्वार से पहले बाहर एक स्तंभ है,
जिसके चारों ओर परात रखी हैं, जिसमें लोग पैसे
चढ़ा रहे हैं। फिर एक द्वार है, जिसके दरवाजों पर
सिंह बने हुए हैं। इसे सिंह द्वार कहा जाता है।

मंदिर में 6-7 फीट चौड़ी 14 सीढ़ियां हैं।
यहां से भक्त लेट-लेटकर आगे बढ़ते हैं। मान्यता है
कि ऐसा करने से नुकसान पहुंचाने वाले
ग्रहों से मुक्ति मिलती है।

गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई
बलराम और बहन सुभद्रा की मूर्तियां हैं।
सभी मूर्तियां लकड़ी की बनी हैं। यहां पूजा
के विधि-विधान भी खास हैं।

भगवान को नहलाना, वस्त्र पहनाना,
सब्जी काटना, पानी लाना, भोग लगाना, हर काम
के लिए एक-एक व्यक्ति है। हर व्यक्ति रोज
अपना काम करता है, कोई दूसरा नहीं।

दाल-भात जगन्नाथ पुरी का प्रसाद है,
जिसकी कीमत 100 रुपए है। इसमें दाल, भात,
सब्जी और खीर होती है। एक हांडी भर के प्रसाद ले
जाना हो, तो उसके लिए 300 रुपए देने होते हैं।

ये ऐसा मंदिर है, जहां मूर्तियां बदली
जाती हैं। हिंदू पंचांग के मुताबिक जब कभी
साल में दो आसाढ़ लगता है, तब भगवान
की मूर्ति बदली जाती है। 

उस वक्त पूरे शहर की बिजली काट
दी जाती है। अंधेरा कर दिया जाता है। मंदिर के
बाहर कड़ा पहरा होता है, ताकि कोई
बाहर से अंदर न आ सके।

मूर्ति बदलने की जिम्मेदारी जिन पुजारियों
की होती है, उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है,
ताकि वे मूर्ति के ऊपर के ब्रह्म पदार्थ को नहीं देख
सकें। ये ब्रह्म पदार्थ क्या है, किसी को नहीं पता। 

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