गले में शिवलिंग,
फिर भी नहीं
जलाते शव

Dharm

कर्नाटक में लिंगायत संप्रदाय के
लोग गले में शिवलिंग को एक अंडाकार
पत्थर में मढ़वाकर, चांदी के कवर में
डालकर गले में पहनते हैं।

इस समुदाय के लोग मंदिर नहीं जाते।
न शिव की पूजा करते हैं और न ही खुद को
हिंदू मानते हैं। वे शिव को निराकार
रूप में देखते हैं। 

अखिल भारतीय वीरशैव लिंगायत
महासभा इनका सबसे बड़ा मंच है।
लिंगायत समुदाय के सभी मठ इसी के
बैनर के तले अपनी बात रखते हैं। 

महासभा के राष्ट्रीय सचिव
रेणुका प्रसन्ना बताते हैं, ‘शिव हमारे
शरीर के हर हिस्से में है। इसलिए हम
शव नहीं जलाते।

’लिंगायत में 88 सेक्ट हैं।
इन सभी के रिवाजों में थोड़ा बहुत फर्क है।
कुछ सेक्ट में अंतिम संस्कार के लिए
मठ के स्वामी को बुलाया जाता है।

लिंगायत समुदाय में कोई
जाति नहीं होती। सबकी पहचान
लिंगायत के रूप में होती है।

इस संप्रदाय में महिलाएं भी इष्टलिंग
धारण करती हैं। जब महिला आठ महीने
की गर्भवती होती है, तभी उसके बाजू
पर इष्टलिंग बांधा जाता है। 

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