क्या पत्नी
घरेलू हिंसा की
आरोपी हो सकती है?

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केंद्र सरकार ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा
रोकने के लिए 2005 में एक कानून बनाया था।
इसे घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण
अधिनियम 2005 कहा जाता है।

घरेलू हिंसा का मतलब पति का पत्नी
को पीटना,जलील करना ही नहीं है।

महिला को पति या उसके परिवार द्वारा मेंटल,
सेक्शुअल या फाइनेंशियल यातना देना भी है।

कानून के मुताबिक घरेलू हिंसा की पीड़ित महिला
के दादा, पिता, चाचा, ताऊ, भाई, पति, बेटा और
अन्य ससुराल वाले (पुरुष) आरोपी हो सकते हैं।

मां, बहन, बेटी, पत्नी या लिविंग पार्टनर इस
कानून के तहत घरेलू हिंसा होने पर मजिस्ट्रेट
के पास शिकायत कर सकती है।

कानून की धारा 2(A) में महिला को
सिर्फ पीड़ित माना गया है। ऐसे में वह
आरोपी नहीं हो सकती है।

कानून के आधार पर हर जिले में
‘सेफ हाउस’ बनाने और प्रोटेक्शन ऑफिसर
नियुक्त करने की व्यवस्था भी की गई है।

कानून में कहा गया है कि किसी
भी हाल में पीड़िता को परिवार वाले
घर से नहीं निकाल सकते हैं।

घरेलू हिंसा का कानून सिविल ऑफेंस
के लिए बना है। इस कानून के सेक्शन- 31 के
तहत कोर्ट दोषी को एक साल की जेल और
जुर्माने की सजा सुना सकता है।

घरेलू हिंसा कानून के तहत बिना
तलाक लिए भी महिला अपने पति से
गुजारा भत्ता ले सकती है।

घरेलू हिंसा कानून में IPC की कुछ धाराएं
जुड़ती हैं। 498A के तहत 1 साल से 3 साल
तक की जेल की सजा हो सकती है।

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